काव्यभाषा और मलूकदास

मीरा मेरी यात्रा पुस्तक के प्रकाशन के बाद मेरी दूसरी पुस्तक आपकी नजर .....आशा है आपका प्रोत्साहन अनवरत रूप से मिलता रहेगा.....आपकी शुभकामनाओं के साथ ...!!! 

यह रहा पुस्तक का आवरण: 

मलूक दास न तो कवि थे, न दार्शनिक, न धर्मशास्त्री,। वह दीवाने, परवाने है और परमात्मा को उन्होंने ऐसे जाना है जैसे परवाना शमा को जानता है। यह पहचान बड़ी दूर-दूर से नहीं, परिचय मात्र नहीं है वह पहचान अपने को गंवा कर, अपने को मिटा कर होती है। लेकिन मलूक की मस्ती सस्ती बात नहीं है। महंगा सौदा है। सब कुछ दांव पर लगाना पड़ता है। जरा भी बचाया तो चूके। निन्यानवे प्रतिशत दांव पर लगाया और एक प्रतिशत भी बचाया तो चूक गए। क्योंकि उस एक प्रतिशत बचाने में ही तुम्हारी बेईमानी जाहिर हो गयी। निन्यानवे प्रतिशत दांव पर लगाने में तुम्हारी श्रद्वा जाहिर न हुई। मगर एक प्रतिशत बचाने में तुम्हारा काइयाँपन जाहिर हो गया। दांव तो सौ प्रतिशत होता है नहीं तो दांव नहीं होता, दुकानदारी होती है। मलूक के साथ चलना हो तो जुआरी कि बात समझनी होगी। दुकानदार की बात छोड़ देनी होगी। यह दांव लगाने वालों की बात है, दीवानों की। धर्म शास्त्री नहीं है। नहीं समझ में पड़ता कि वेद पढ़े होंगे। नहीं समझ में पड़ता की उपनिषद जाने होंगे। लेकिन फिर भी वेदों का जो राज है और उपनिषदों का जो सार है, वह उनके प्राणों से बिखरता है। वेद जानकर कभी किसी ने वेद जाने, स्वयं को जानकर वेद जाने जाते है। चार वेद नहीं है एक ही वेद है। वह तुम्हारे भीतर वह तुम्हारे चैतन्य का है और एक सौ आठ उपनिषद नहीं है। एक ही उपनिषद है, और उपनिषद शास्त्र नहीं है स्वयं की सत्ता है। मूलक दास ज्ञानी नहीं थे। पंडित नहीं है। मलूक दास से पहचान करनी हो तो मंदिर को मधुशाला बनाना पड़े। तो पूजा पाठ से नहीं होगा। औपचारिक आडम्बर से परमात्मा नहीं सधेगा। हार्दिक समर्पण चाहिए। समर्पण जो कि समग्र हो, समर्पण ऐसा कि झुको तो फिर उठो नहीं। उसके द्वार पर झुक गये तो फिर उठना कैसा। जो काबा से लौट आता है। वह काबा गया ही नहीं। जो मंदिर से वापिस आ जाता है। वह कही गया होगा मंदिर नहीं गया। मूलक दास के जीवन के संबंध में कुछ बातें जान ले। वे प्रतीकात्मक है। समझ लेने जैसी है। ऊपर से तो नहीं दिखायी पड़ती कि बहुत कीमती है, लेकिन अगर उन प्रतीकों के भीतर प्रवेश करोगे के भीतर प्रवेश करोगे तो जरूर बड़े राज, बड़े रहस्यों के द्वार खुलेंगे। ऐसे ही बड़े रहस्यों के द्वार खोलने का प्रयास किया है मंजु रानी ने, पुस्तक का प्रणयन बहुत ही सधी हुई और सटीक भाषा से हुआ है। काव्यभाषा का तथ्यपरक विष्लेषण के साथ-साथ मलूकदास जी के जीवन के अनछुए पहलुओं को भी यहां दर्शाया गया है। सुधी पाठकगण इसका आस्वादन कर ज्ञानार्जन करेंगे।

Comments

  1. मंजु रानी की यह दूसरी पुस्तक है। इतने कम समय में दो-दो पुस्तकों का प्रणयन इनकी अध्ययनधर्मिता और शैक्षणिक लगनशीलता का परिचायक ही कहा जा सकता है। मुझे ही नहीं बल्कि रानी के सभी मित्रों को यह भरोसा हो जाना चाहिए कि अब मिस रानी की मंजिल दूर नहीं है, उन्होंने अपना लक्ष्य पा सा लिया है और जल्द ही वो उस तक पहुंच भी जायेंगी। रानी के सभी सुधी मित्रों, पाठकों, स्वजनों एवं परिवारीजनों से मेरा निवेदन है कि रानी को आशीर्वाद और सद्प्रेरणा से अभिसिंचित करते रहें ताकि उनकी लेखनी में पैनापन और गतिषीलता सब दिन इसी रूप में बनी रहे। आमीन।

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति
    आपको जन्मदिन-सह-श्री गणेश जन्मोत्सव की हार्दिक मंगलकामनाएं!

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  3. आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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  4. आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं!

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