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'मध्यकालीन काव्य भाषा का स्वरुप और मीरां की काव्य भाषा' विषय पर मंजू रानी को मिली 'विद्यावाचस्पति' की उपाधि
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'मीरां' पर शीघ्र होगा कविता संग्रह का प्रकाशन
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मीरां मध्यकालीन हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक जाना पहचाना नाम है. कृष्ण भक्ति शाखा की यह कवयित्री अपनी भक्ति भावना और जीवन दर्शन के कारण हिन्दी साहित्य ही नहीं बल्कि भारतीय समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखती है. मीरा की काव्य यात्रा के केन्द्र में कृष्ण हैं. वहीँ कृष्ण भारतीय जीवन दर्शन के केन्द्र में हैं. गीता जैसे गौरव ग्रन्थ में कृष्ण और अर्जुन का संवाद जिस तरह से ज्ञान-भक्ति और कर्म के गूढ़ रहस्यों को खोलता है , उसी तरह से मीरां के काव्य और जीवन के माध्यम से हमें कृष्ण के प्रति उनके अविरल और अप्रतिम प्रेम की झलक मिलती है. उनका तो कहना ही था “मेरे तो गिरधर गोपाल , दूसरो न कोय”. मीरां की यह भक्ति-भावना , प्रेम और समर्पण मध्यकाल से आज तक लोगों को प्रेरित करते रहे हैं. इसलिए हमने निर्णय लिया है कि मीरां के जीवन के विभिन्न पहलूओं कुछ रचनाएं आमन्त्रित कर उन्हें पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाए. आप सभी से विनम्र निवेदन है , कि जिसके पास ' मीरा ' से जुड़ी कविताएँ है , या जो मीरा पर स्वरचित कविता लिखना चाहता/चाहती है , मुझे शीघ्र manjurani2015@gmai