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'मध्यकालीन काव्य भाषा का स्वरुप और मीरां की काव्य भाषा' विषय पर मंजू रानी को मिली 'विद्यावाचस्पति' की उपाधि

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गत 18 नवम्बर 2017 को दिल्ली विश्वविद्यालय का 94 वां दीक्षांत समारोह आयोजित किया गया. जिसमें मंजू रानी को  'विद्यावाचस्पति' की उपाधि प्रदान की गयी. समारोह की कुछ झलकियाँ प्रस्तुत हैं.     

मीरां का जीवन संघर्ष

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'मीरां' पर शीघ्र होगा कविता संग्रह का प्रकाशन

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मीरां मध्यकालीन हिन्दी साहित्य के इतिहास में एक जाना पहचाना नाम है. कृष्ण भक्ति शाखा की यह कवयित्री अपनी भक्ति भावना और जीवन दर्शन के कारण हिन्दी साहित्य ही नहीं बल्कि भारतीय समाज में महत्वपूर्ण स्थान रखती है. मीरा की काव्य यात्रा के केन्द्र में कृष्ण हैं. वहीँ कृष्ण भारतीय जीवन दर्शन के केन्द्र में हैं. गीता जैसे गौरव ग्रन्थ में कृष्ण और अर्जुन का संवाद जिस तरह से ज्ञान-भक्ति और कर्म के गूढ़ रहस्यों को खोलता है , उसी तरह से मीरां के काव्य और जीवन के माध्यम से हमें कृष्ण के प्रति उनके अविरल और अप्रतिम प्रेम की झलक मिलती है. उनका तो कहना ही था “मेरे तो गिरधर गोपाल , दूसरो न कोय”. मीरां की यह भक्ति-भावना , प्रेम और समर्पण मध्यकाल से आज तक लोगों को प्रेरित करते रहे हैं. इसलिए हमने निर्णय लिया है कि मीरां के जीवन के विभिन्न पहलूओं कुछ रचनाएं आमन्त्रित कर उन्हें पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया जाए.                           आप सभी से विनम्र निवेदन है , कि जिसके पास ' मीरा ' से जुड़ी कविताएँ है , या जो मीरा पर स्वरचित कविता लिखना चाहता/चाहती है , मुझे शीघ्र manjurani2015@gmai

काव्यभाषा और मलूकदास

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मीरा मेरी यात्रा पुस्तक के प्रकाशन के बाद मेरी दूसरी पुस्तक आपकी नजर .....आशा है आपका प्रोत्साहन अनवरत रूप से मिलता रहेगा.....आपकी शुभकामनाओं के साथ ...!!!  यह रहा पुस्तक का आवरण:  मलूक दास न तो कवि थे , न दार्शनिक , न धर्मशास्त्री , । वह दीवाने , परवाने है और परमात्मा को उन्होंने ऐसे जाना है जैसे परवाना शमा को जानता है। यह पहचान बड़ी दूर-दूर से नहीं , परिचय मात्र नहीं है वह पहचान अपने को गंवा कर , अपने को मिटा कर होती है। लेकिन मलूक की मस्ती सस्ती बात नहीं है। महंगा सौदा है। सब कुछ दांव पर लगाना पड़ता है। जरा भी बचाया तो चूके। निन्यानवे प्रतिशत दांव पर लगाया और एक प्रतिशत भी बचाया तो चूक गए। क्योंकि उस एक प्रतिशत बचाने में ही तुम्हारी बेईमानी जाहिर हो गयी। निन्यानवे प्रतिशत दांव पर लगाने में तुम्हारी श्रद्वा जाहिर न हुई। मगर एक प्रतिशत बचाने में तुम्हारा काइयाँपन जाहिर हो गया। दांव तो सौ प्रतिशत होता है नहीं तो दांव नहीं होता , दुकानदारी होती है। मलूक के साथ चलना हो तो जुआरी कि बात समझनी होगी। दुकानदार की बात छोड़ देनी होगी। यह दांव लगाने वालों की बात है , दीवानों की। धर्म श

मीरा : मेरी यात्रा, पुस्तक का विमोचन

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हिन्दी साहित्य में अप्रतिम स्थान रखने वाली कवियित्री मीरा का नाम बड़े आदर और सम्मान से लिया जाता है. मीरा दर्द की दीवानी,  अपने गुरु के प्रति पूरी भक्ति भाव से भरी हुई समाज की वेदनाओं के सहते हुए एक नया आयाम स्थापित करती हैं. मीरा के साहित्य को लेकर शोध के दौरान मेरे मन में उन पर पुस्तक निकालने की योजना बनी, और उस योजना को मूर्त रूप मिला इस महीने की चार तारीख को जब मीरा मेरी यात्रा पुस्तक का विमोचन हुआ .....इस पुस्तक का विमोचन ननद किशोर राजौरा ने किया . उनके साथ – साथ इस कार्यक्रम में कई विशिष्ट अथिति उपस्थित थे ....यहाँ पेश हैं कार्यक्रम की कुछ चित्रमयी झलकियाँ ....बाकी विवरण फिर ....!!!     समारोह की शुरुआत  पुस्तक का कवर पेज  पुस्तक का विमोचन   संपादिका का सम्मान  
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आप सभी को ये बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है की मेरी पुस्तक का काम लगभग पूरा होने जा रहा है . मंजू रानी शोधार्थी (दिल्ली विश्वविद्यालय) .