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मीराबाई को लोगों ने बहुत त्रस्त किया सहने की भी सीमा होती है मीराबाई ने बहुत सहन किया।।
एक बार बहुत व्याकुल हो गयीं , तब चित्रकूट में तुलसीदास जी महाराज को उन
्होंने पत्र लिखा।।।
आशय था कि
मै तीन वर्ष की थी,
तब से गिरधर गोपाल के प्रति अनुरक्त हु।
मेरी इच्छा न होने पर मेरा विवाह हुआ।।
मै एक राजा की रानी हु।
राजमहल का विलासी जीवन मुझे पसंद नहीं है।
मै पति को परमात्मा मानती हु।
व्यवहार की मर्यादा से भक्ति करती हु फिर भी लोगों से त्रास पाती हु।
मै क्या करू?
तुलसीदास जी महाराज ने उत्तर दिया -
'बेटी, सुवर्ण की परख कसौटी पर होती है,
पीतल की कसौटी पर नहीं होती।
मन को समझाना की कन्हैया तुम्हे कसौटी पर परख रहे है।
धैर्य धारण कर लो।
जिन्हें श्री सीताराम प्रिय नहीं लगते,
जिन्हें श्री कृष्ण से प्रेम नही है,
जो माँ के भक्त नहीं उसे दूर से ही वंदन करो,
वैष्णव बैर नहीं रखते,
उपेक्षा करते है ---
जाके प्रिय न राम वैदेही।
तजिए ताहि कोटि वैरी सम,
यद्यपि परम स्नेही।।
जिन्हें श्रीसीताराम प्रिय नहीं है, जिन्हें श्रीराम से प्रेम नहीं है, उनका संग छोड़ दो,
मीराबाई ने पत्र पढ़ा ..
उन्होंने मेवाड़ छोड़ दिया।
वे
श्रीधाम वृन्दावन में जाकर रहने लग गई।
इतिहास कहता है कि मीराबाई के मेवाड़ त्याग के
बाद मेवाड़ बहुत दुखी हुआ .
यवनों का मेवाड़ पर आक्रमण हुआ,
जबतक मीराबाई मेवाड़ विराजमान थी,
तब तक मेवाड़ सुखी था
मंजू रानी शोधार्थी (दिल्ली विश्वविद्यालय)
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